बुधवार, 26 जनवरी 2022

बुनियादी शिक्षा - आज की अहम ज़रूरत

हमारे देश में कक्षा 8 तक की बुनियादी शिक्षा मुफ़्त एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार की श्रेणी में है। इसके तहत 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु-वर्ग के बच्चों को पूरे साल के दौरान कभी भी प्रवेश दिलाया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि कक्षा 8 तक किसी भी कक्षा में किसी बच्चे को अनुत्तीर्ण करने का कोई प्राविधान नहीं है। यानि बच्चे द्वारा यदि उत्तर-पुस्तिका में कुछ भी नहीं लिखा गया है, इस तथ्य का बच्चे की अगली कक्षा में प्रोन्नति से कोई नाता नहीं है। यह प्राविधान विमर्श का विषय है। नो डिटेंशन पालिसी को शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए समाप्त किये जाने की नितान्त आवश्यकता है।
ज़मीनी स्तर पर परिणाम साफ़ नज़र आ रहे हैं। आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों के स्तर में पहले की तुलना में भारी गिरावट आई है। स्थिति यह है कि कक्षा 9 और 10 में अनुत्तीर्ण होने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई है। पठन-स्तर और बौद्धिक-समझ का विकास कक्षा के अनुरूप न होने के कारण बच्चों की दिलचस्पी कक्षाओं में कम रहती है। बुनियादी कमज़ोरी बच्चों को विभिन्न विषयवस्तु को समझने में कठिनाई उत्पन्न कर रही है।
हाईस्कूल और इंटरमीडिएट स्तर पर शिक्षक बच्चों को अपनी पूरी क्षमता से पढ़ाने में असफल साबित हो रहा है। कक्षा 6 अथवा कक्षा 9 में प्रवेश लेने वाला बहुत सी बुनियादी चीजों को सीखे बग़ैर स्कूल में आ जाता है। बच्चों को जो चीजें 05 वर्ष अथवा 08 वर्ष के अंतराल में सीखनी चाहिए उन तमाम बुनियादी चीजों को एक वर्ष में सिखाना और साथ ही साथ सम्बंधित कक्षा की पाठ्य-सामग्री को निर्धारित समय में पूरा करने का एक बहुत बड़ा चैलेंज होता है जो नामुमकिन से है।
अब सवाल यह उठता है कि बुनियाद तैयार करने वाले शिक्षक कहाँ हैं ? प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक कक्षाओं में अध्यापन करने वाले शिक्षकों को यह समझने की नितांत आवश्यकता है कि वे जो विषय पढ़ा रहे हैं वही उनकी उच्च शिक्षा का आधार बनेगा। शिक्षा की समग्रता को दृष्टिगत रखते हुए अध्यापक को संवेदनशील होने की आवश्यकता है।
प्राथमिक स्तर पर शिक्षा की स्थिति को पुख्ता बनाने के लिए प्रयास करने और विद्यालयों की सतत मॉनिटरिंग करके उचित फीडबैक देने की जरूरत है। ताकि पहली-दूसरी कक्षा के बच्चे किताब पढ़ना, अपनी बात को अच्छे तरीके से बोलकर बताना और गणित के बुनियादी कौशलों का विकास कर सकें।
इसके लिए शिक्षकों के प्रशिक्षण को ज्यादा प्रभावशाली बनाने और क्लासरूम स्तर पर होने वाले प्रयासों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। इसके साथ ही वहां पेश आने वाली समस्याओं को सुलझाने के लिए विभिन्न शिक्षक साथियों के बीच संवाद का एक सेतु बनना चाहिए। इससे समाधान का एक सिलसिला शुरू होगा जो एक स्कूल के शिक्षक से होते हुए, दूसरे स्कूल के शिक्षक तक पहुंचेगा।
बच्चे स्कूल में पढ़ने के लिए आएं, यह सुनिश्चित करना अभिभावक की जिम्मेदारी होनी चाहिए। निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावक अपनी इस भूमिका को बेहतर ढंग से निभा रहे हैं। भले ही वे दबाव में ऐसा कर रहे हों, मगर सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को अभिभावकों का पर्याप्त समय नहीं मिल पाता है या उनके अभिभावक यह मानकर चलते हैं कि बच्चों को पढ़ाने और उनको स्कूल तक बुलाने की जिम्मेदारी भी शिक्षक की ही है। वे बच्चों को जब मन होता है, घर पर रोक लेते हैं क्योंकि उनको लगता है कि बच्चे स्कूल जाएं या न जाएं उनको तो पास होना ही है।
कुल मिलाकर निष्कर्ष यही है कि प्राथमिक स्तर की शिक्षा की मजबूत नींव पर ही उच्च शिक्षा की कहानी लिखी जा सकती है। इसलिए प्राथमिक स्तर पर बच्चों की पढ़ाई पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इससे उनको उच्च-प्राथमिक स्तर पर मदद मिलेगी और वे सेकेण्डरी या हायर सेकेण्डरी स्तर पर कक्षा के अनुरूप प्रदर्शन कर पाएंगे। इससे उन शिक्षकों को मदद मिलेगी जो सच में पढ़ाना चाहते हैं। अपने छात्रों को भविष्य में उच्च शिक्षा के लिए तैयार करना चाहते हैं।
ऐसे माहौल का निर्माण माध्यमिक स्तर पर पढ़ाने वाले शिक्षकों को उनको अपनी क्षमता के अनुसार पढ़ाने और नए विचारों को क्लासरूम में लागू करने के लिए प्रेरित करने में मदद करेगा।
Abul Hashim Khan
November 07, 2021
2:45 PM

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