बुधवार, 26 जनवरी 2022

हिन्दी काव्य का इतिहास और काव्यशास्त्र (कक्षा 11 व 12 के लिए उपयोगी)

लेख को हिन्दी के सभी छात्र पढ़ें।
हिन्दी साहित्य के इतिहास में 8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के मध्य के काल को आदिकाल/वीरगाथा काल/वीरकाल कहा गया। आदिकाल में मुख्यतः  नाथ/सिद्ध साहित्य,  जैन साहित्य, चारणी साहित्य और प्रकीर्णक हैं। 
चारण, ब्रह्मभट्ट और बंदीजन कवि प्रायः दरबारी कवि थे जो आश्रयदाता राजाओं की अतिरंजित प्रशंसा करते थे। श्रंगार और वीर उनके प्रमुख रस थे।
प्रख्यात रचनाकार चंदबरदाई, दलपति, नरपति नाल्ह, जगनिक आदि रहे। महत्वपूर्ण काव्य पृथ्वीराज रासो है।
हिन्दी साहित्य में आदिकाल विविध साहित्यिक प्रवृत्तियों के विकास का काल है जिसमें साहित्यिक प्रवृतियां निर्मित हो रही थीं और भाषा एक नया रूप ले रही थी। आदिकाल को भाषा का सन्धिकाल कहते हैं। आदिकाल की परम्परा में वीरगाथाओं की प्रमुखता रही है।
राजनैतिक परिस्थितियों के आधार पर यह कालखण्ड युद्ध, संघर्ष और अशान्ति से ग्रस्त रहा। राजाओं की संकुचित मानसिकता, अराजकता, गृह कलह, विद्रोह एवं युद्ध के अत्यंत दूषित वातावरण में जनता असन्तोष, क्षोभ और भ्रम से ग्रसित थी। आदिकालीन साहित्य में इसी मानसिकता के अनुरूप खंडन मंडन, हठयोग, वीरता और श्रृंगार परक रचनाओं को देखा जा सकता है।

आदिकाल के बाद के युग को पूर्व मध्यकाल/भक्ति काल कहा गया। ये हिन्दी काव्य साहित्य का स्वर्णकाल है जिसमें आदिकाल के असंतोष, क्षोभ एवं भ्रम से ग्रसित मन को ईश्वर की ओर एकाग्र कर सुख और शान्ति की स्थापना का प्रादुर्भाव हुआ। भक्तिकाल में सगुण और निर्गुण भक्ति की चार प्रमुख काव्यधाराएं मिलती हैं।
भक्तिकाल के प्रमुख कवि कबीरदास, संत शिरोमणि रविदास, तुलसीदास, सूरदास, नंददास, कृष्णदास, परमानन्द दास, कुम्भनदास, चतुर्भुजदास, छीतस्वामी, गोविन्दस्वामी, तितहरिवंश, गजाधर भट्ट, मीराबाई, स्वामी हरिदास, सूरदास मदनमोहन, श्रीभट्ट व्यास जी, रसखान, रहीमदास और चैतन्य महाप्रभु हैं।
भक्तिकालीन काव्य सर्वश्रेष्ठ काव्य है। परमात्मा की भक्ति का पावन संदेश देने वाला यह काव्य साहित्य की अमूल्य निधि है।

हिन्दी साहित्य में 16वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी के मध्य के काल को उत्तर मध्यकाल/रीतिकाल कहते हैं जिसमें श्रृंगार परक रचनाओं का आधिक्य है, जिसका मुख्य कारण तत्कालीन परिवेश, राजा, नवाब और सामंतवादी लोगों का वर्चस्व है। कवियों पर जीविकोपार्जन और आश्रयदाताओं का आधिपत्य रहा है।
रीतिकाल में मुग़ल शासन पतन की ओर अग्रसर था। सामंतवादी प्रवृत्ति का बोलबाला था। निर्धन जनता पिसी जा रही थी, उच्च वर्ग विलास के उपकरणों के संचय और सुरा सुन्दरी में लीन था। रीतिकालीन कवियों में सामंतों की विलासवृति को तुष्ट करने के लिए श्रृंगार प्रधान रचनाओं की होड़ लगी थी। यद्यपि सामाजिक स्थितियाँ अत्यंत दयनीय थीं, यह काल कला और साहित्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है।
रीतिकालीन साहित्य को प्रमुख रूप से तीन वर्गों में विभाजित किया गया है। 
रीतिबद्ध काव्य (लक्षण काव्य) जिसमें काव्यांगों के लक्षण के साथ साथ उदाहरण एवं व्याख्या की परिपाटी को अपनाया गया है। प्रमुख भाषा ब्रज थी और प्रमुख कवि चिंतामणि, केशवदास, मतिराम, भिखारीदास, भूषण, पद्माकर, देव और ग्वाल हैं।
रीतिसिद्ध काव्य (लक्ष्य काव्य) जिसमें लक्षण, उदाहरण और काव्यांगों की समझ के बावजूद भी काव्यांगों के लक्षणों को न लिखकर स्वतंत्र रचना की। कवियों ने भावपक्ष और कलापक्ष पर बल दिया। प्रमुख कवि बिहारी, रसनिधि, नृपशम्भू, नेवाज और सेनापति हैं।
रीतिमुक्त काव्य (स्वच्छन्द काव्य) जिसमे ऐसे कवि हैं जिन्होंने काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों के आधार पर रचनाएं नहीं की। शास्त्रीय पद्धति से जुड़े होने के बावजूद भी लोक रुचियों और वियोग श्रृंगार को अपनी रचनाओं का आधार बनाया। प्रमुख कवि घनानंद, ठाकुर, आलम, बोधा और द्विजदेव हैं।

आधुनिक काल (1850ईo से अद्यतन) में हिन्दी साहित्य में अनेक परिवर्तन हुए। भारत में स्वतंत्रता संग्राम, स्वतंत्रता, जनसंचार के विभिन्न संसाधनों का विकास, रेडियो, टीवी, समाचार पत्रों और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं का हर घर का हिस्सा बनना, गतिविधियों और परिस्थितियों का पूरा प्रभाव आधुनिक साहित्य में परिलक्षित होने लगा। आधुनिक काल में अनेक विचारधाराओं का प्रखर विकास हुआ। काव्य में इसे छायावादी युग, प्रगतिवादी युग, प्रयोगवादी युग और साठोत्तरी कविता के नाम से जाना गया। छायावाद से पूर्व के समय को भारतेंदु युग और द्विवेदी युग में विभाजित किया गया।
भारतेन्दु युग (1850 ईo से 1900 ईo तक) की कविताओं में प्राचीन एवं नवीन भावों का सम्मिश्रण देखने को मिलता है। भक्तिकाल एवं रीतिकाल की परंपराओं के साथ साथ आधुनिक नूतन विचार एवं भावों के साथ साथ भक्ति, श्रृंगार, देशभक्ति एवं सामाजिक समस्याओं की ओर अग्रसर होती हुई कविताओं की रचनाएं हुईं जिनमें भाषा खड़ी बोली की ओर अग्रसर होती हुई दिखी। प्रमुख कव भार्तेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रताप नारायण मिश्र, बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन', राधाचरण गोस्वामी और अम्बिका दत्त व्यास हैं।
द्विवेदी युग (1900 ई० से 1920 ईo तक) में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से ब्रजभाषा काव्य से हटती गई और खड़ी बोली उसका स्थान ले चुकी थी। आदर्शवाद का बोलबाला रहा। भारत का उज्ज्वल अतीत, देश-भक्ति, सामाजिक सुधार, स्वभाषा-प्रेम आदि कविता के मुख्य विषय थे। नीतिवादी विचारधारा के कारण श्रृंगार का वर्णन मर्यादित हो गया। कथा-काव्य का विकास इस युग की विशेषता है। भाषा खुरदरी और सरल रही। मधुरता एवं सरलता के गुण अभी खड़ी-बोली में आ नहीं पाए थे। इस युग के प्रमुख कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध', रामचरित उपध्याय, जगन्नाथ दास रत्नाकर, गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही', श्रीधर पाठक, राम नरेश त्रिपाठी, मैथिलीशरण गुप्त, लोचन प्रसाद पाण्डेय और सियारामशरण गुप्त हैं।

छायावादी युग (1920-1936) के दौर में हिंदी में कल्पनापूर्ण स्वछंद और भावुक कविताओं की एक बाढ़ आई। यह यूरोप के रोमांटिसिज़्म से प्रभावित थी। भाव, शैली, छंद, अलंकार सब दृष्टियों से यह नवीन था। भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता के बाद लोकप्रिय हुई इस कविता को आलोचकों ने छायावादी युग का नाम दिया। छायावादी कवियों की उस समय भारी कटु आलोचना हुई परंतु आज यह निर्विवाद तथ्य है कि आधुनिक हिंदी कविता की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि इसी समय के कवियों द्वारा हुई। जयशंकर प्रसाद, निराला, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा इस युग के प्रधान कवि के रूप में जाने जाते हैं।

उत्तर-छायावाद युग (1936-1943) भारतीय राजनीति में भारी उथल-पुथल का काल रहा है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय, कई विचारधाराओं और आन्दोलनों का प्रभाव इस काल की कविता पर पड़ा। द्वितीय विश्वयुद्ध के भयावह परिणामों के प्रभाव से भी इस काल की कविता बहुत हद तक प्रभावित है। निष्कर्षत:राष्ट्रवादी, गांधीवादी, विप्लववादी, प्रगतिवादी, यथार्थवादी, हालावादी आदि विविध प्रकार की कवितायें इस काल में लिखी गई। इस काल के प्रमुख कवि माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा 'नवीन', सुभद्रा कुमारी चौहान, रामधारी सिंह 'दिनकर', हरिवंश राय 'बच्चन', भगवतीचरण वर्मा, नरेन्द्र शर्मा, रामेश्वर शुक्ल 'अंचल', शिवमंगल सिंह 'सुमन', नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल, त्रिलोचन और रांगेयराघव हैं।

प्रगतिवादी युग (1936) छायावादी काव्य बुद्धिजीवियों के मध्य ही रहा। जन-जन की वाणी यह नहीं बन सका। सामाजिक एवं राजनैतिक आंदोलनों का सीधा प्रभाव इस युग की कविता पर सामान्यतः नहीं पड़ा। संसार में समाजवादी विचारधारा तेज़ी से फैल रही थी। सर्वहारा वर्ग के शोषण के विरुध्द जनमत तैयार होने लगा। इसकी प्रतिच्छाया हिंदी कविता पर भी पड़ी और हिंदी साहित्य के प्रगतिवादी युग का जन्म हुआ। 1930 क़े बाद की हिंदी कविता ऐसी प्रगतिशील विचारधारा से प्रभावित है

1936 में "प्रगतिशील लेखक संघ" के गठन के साथ हिन्दी साहित्य में मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित प्रगतिवादी आन्दोलन की शुरुआत हुई .इसका सबसे अधिक दूरगामी प्रभाव हिन्दी आलोचना पर पड़ा। मार्क्सवादी आलोचकों ने हिन्दी साहित्य के समूचे इतिहास को वर्ग-संघर्ष के दॄष्टिकोण से पुनर्मूल्यांकन करने का प्रयास आरंभ किया। प्रगतिवादी कवियों मे नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल और त्रिलोचन के साथ नयी कविता के कवि मुक्तिबोध और शमशेर को भी रखा जाता है।

प्रयोगवाद अर्थात नई कविता का युग (1943-1960) आया। दूसरे विश्वयुध्द के पश्चात संसार भर में घोर निराशा तथा अवसाद की लहर फैल गई। साहित्य पर भी इसका प्रभाव पड़ा। 'अज्ञेय' के संपादन में 1943 में 'तार सप्तक' का प्रकाशन हुआ। तब से हिंदी कविता में प्रयोगवादी युग का जन्म हुआ ऐसी मान्यता है। इसी का विकसित रूप नयी कविता कहलाता है। दुर्बोधता, निराशा, कुंठा, वैयक्तिकता, छंदहीनता के आक्षेप इस कविता पर भी किए गए हैं। वास्तव में नयी कविता नयी रुचि का प्रतिबिंब है। इस धारा के मुख्य कवि अज्ञेय, गिरिजाकुमार माथुर, प्रभाकर माचवे, भारतभूषण अग्रवाल, मुक्तिबोध, शमशेर बहादुर सिंह, धर्मवीर भारती, नरेश मेहता, रघुवीर सहाय, जगदीश गुप्त, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, कुंवर नारायण और केदार नाथ सिंह हैं।

कालांतर में कई सम-विषम परिस्तिथियों व घटनाओ से प्रभावित होते हुए आधुनिक हिंदी खड़ी बोली कविता ने भी अल्प समय में उपलब्धि के उच्च शिखर प्राप्त किया। क्या प्रबंध काव्य, क्या मुक्तक काव्य, दोनों में हिंदी कविता ने सुंदर रचनाएं प्राप्त की हैं। गीति-काव्य के क्षेत्र में भी कई सुंदर रचनाएं हिंदी को मिली हैं। आकार और प्रकार का वैविध्य बरबस हमारा ध्यान आकर्षित करता है। संगीत-रूपक, गीत-नाटय वगैरह क्षेत्रों में भी प्रशंसनीय कार्य हुआ है। कविता के बाह्य एवं अंतरंग रूपों में युगानुरूप जो नये-नये प्रयोग नित्य-प्रति होते रहते हैं, वे हिंदी कविता की जीवनी-शक्ति एवं स्फूर्ति के परिचायक हैं।

बुनियादी शिक्षा - आज की अहम ज़रूरत

हमारे देश में कक्षा 8 तक की बुनियादी शिक्षा मुफ़्त एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार की श्रेणी में है। इसके तहत 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु-वर्ग के बच्चों को पूरे साल के दौरान कभी भी प्रवेश दिलाया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि कक्षा 8 तक किसी भी कक्षा में किसी बच्चे को अनुत्तीर्ण करने का कोई प्राविधान नहीं है। यानि बच्चे द्वारा यदि उत्तर-पुस्तिका में कुछ भी नहीं लिखा गया है, इस तथ्य का बच्चे की अगली कक्षा में प्रोन्नति से कोई नाता नहीं है। यह प्राविधान विमर्श का विषय है। नो डिटेंशन पालिसी को शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए समाप्त किये जाने की नितान्त आवश्यकता है।
ज़मीनी स्तर पर परिणाम साफ़ नज़र आ रहे हैं। आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों के स्तर में पहले की तुलना में भारी गिरावट आई है। स्थिति यह है कि कक्षा 9 और 10 में अनुत्तीर्ण होने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई है। पठन-स्तर और बौद्धिक-समझ का विकास कक्षा के अनुरूप न होने के कारण बच्चों की दिलचस्पी कक्षाओं में कम रहती है। बुनियादी कमज़ोरी बच्चों को विभिन्न विषयवस्तु को समझने में कठिनाई उत्पन्न कर रही है।
हाईस्कूल और इंटरमीडिएट स्तर पर शिक्षक बच्चों को अपनी पूरी क्षमता से पढ़ाने में असफल साबित हो रहा है। कक्षा 6 अथवा कक्षा 9 में प्रवेश लेने वाला बहुत सी बुनियादी चीजों को सीखे बग़ैर स्कूल में आ जाता है। बच्चों को जो चीजें 05 वर्ष अथवा 08 वर्ष के अंतराल में सीखनी चाहिए उन तमाम बुनियादी चीजों को एक वर्ष में सिखाना और साथ ही साथ सम्बंधित कक्षा की पाठ्य-सामग्री को निर्धारित समय में पूरा करने का एक बहुत बड़ा चैलेंज होता है जो नामुमकिन से है।
अब सवाल यह उठता है कि बुनियाद तैयार करने वाले शिक्षक कहाँ हैं ? प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक कक्षाओं में अध्यापन करने वाले शिक्षकों को यह समझने की नितांत आवश्यकता है कि वे जो विषय पढ़ा रहे हैं वही उनकी उच्च शिक्षा का आधार बनेगा। शिक्षा की समग्रता को दृष्टिगत रखते हुए अध्यापक को संवेदनशील होने की आवश्यकता है।
प्राथमिक स्तर पर शिक्षा की स्थिति को पुख्ता बनाने के लिए प्रयास करने और विद्यालयों की सतत मॉनिटरिंग करके उचित फीडबैक देने की जरूरत है। ताकि पहली-दूसरी कक्षा के बच्चे किताब पढ़ना, अपनी बात को अच्छे तरीके से बोलकर बताना और गणित के बुनियादी कौशलों का विकास कर सकें।
इसके लिए शिक्षकों के प्रशिक्षण को ज्यादा प्रभावशाली बनाने और क्लासरूम स्तर पर होने वाले प्रयासों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। इसके साथ ही वहां पेश आने वाली समस्याओं को सुलझाने के लिए विभिन्न शिक्षक साथियों के बीच संवाद का एक सेतु बनना चाहिए। इससे समाधान का एक सिलसिला शुरू होगा जो एक स्कूल के शिक्षक से होते हुए, दूसरे स्कूल के शिक्षक तक पहुंचेगा।
बच्चे स्कूल में पढ़ने के लिए आएं, यह सुनिश्चित करना अभिभावक की जिम्मेदारी होनी चाहिए। निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावक अपनी इस भूमिका को बेहतर ढंग से निभा रहे हैं। भले ही वे दबाव में ऐसा कर रहे हों, मगर सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को अभिभावकों का पर्याप्त समय नहीं मिल पाता है या उनके अभिभावक यह मानकर चलते हैं कि बच्चों को पढ़ाने और उनको स्कूल तक बुलाने की जिम्मेदारी भी शिक्षक की ही है। वे बच्चों को जब मन होता है, घर पर रोक लेते हैं क्योंकि उनको लगता है कि बच्चे स्कूल जाएं या न जाएं उनको तो पास होना ही है।
कुल मिलाकर निष्कर्ष यही है कि प्राथमिक स्तर की शिक्षा की मजबूत नींव पर ही उच्च शिक्षा की कहानी लिखी जा सकती है। इसलिए प्राथमिक स्तर पर बच्चों की पढ़ाई पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इससे उनको उच्च-प्राथमिक स्तर पर मदद मिलेगी और वे सेकेण्डरी या हायर सेकेण्डरी स्तर पर कक्षा के अनुरूप प्रदर्शन कर पाएंगे। इससे उन शिक्षकों को मदद मिलेगी जो सच में पढ़ाना चाहते हैं। अपने छात्रों को भविष्य में उच्च शिक्षा के लिए तैयार करना चाहते हैं।
ऐसे माहौल का निर्माण माध्यमिक स्तर पर पढ़ाने वाले शिक्षकों को उनको अपनी क्षमता के अनुसार पढ़ाने और नए विचारों को क्लासरूम में लागू करने के लिए प्रेरित करने में मदद करेगा।
Abul Hashim Khan
November 07, 2021
2:45 PM

मंगलवार, 25 जनवरी 2022

किंग जॉर्ज इण्टर कॉलेज, उतरौला/एम० वाई० उस्मानी इण्टर कालेज उतरौला का गौरवशाली इतिहास

 किंग जॉर्ज इण्टर कॉलेज, उतरौला/एम० वाई० उस्मानी इण्टर कालेज उतरौला का गौरवशाली इतिहास 


इतिहास पर एक नज़र
आदमी मुसाफ़िर है, आता है जाता है।
आते जाते रस्ते में, यादें छोड़ जाता है।
आज से लगभग 95 वर्ष पूर्व एम वाई उस्मानी इण्टर कॉलेज, उतरौला (किंग जॉर्ज इण्टर कॉलेज, उतरौला) की स्थापना हुई।
यह वह ज़माना था जब हमारा देश अंग्रेज़ी हुकूमत की ज़द में था। ग़ुलामी और अशिक्षा का अँधेरों में हम सब भटक रहे थे। हमारा इलाक़ा कुछ ज़्यादा ही पिछड़ा हुआ था। अशिक्षा को दूर करने के लिए और इलाक़ाई बच्चों को शिक्षा का खज़ाना देने के लिए मोहम्मद यूसुफ उस्मानी की अगुआई में कुछ लोग आगे आये और एक बेहतर स्कूल स्थापित करने की मुहिम की शुरुआत 1924 में की।
कहते हैं कि इतिहास ख़ुद को दुहराता है। दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्होंने इंसानियत के लिए और जन-कल्याण के लिए अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया। शिक्षा के क्षेत्र में भी ऐसे ही बहुत लोग हुए हैं जिन्होंने बड़े-बड़े कारनामे किए हैं जिससे आज भी दुनिया में लोग उनको याद रखते हैं। 
कुछ ऐसी ही सोंच रखने वाले लोगों में श्री ग़ुलाम जीलानी, जायस (रायबरेली) अमेठी, एसडीओ, उतरौला, श्री एम. अमानत अली, कसेन्दा (इलाहाबाद), कौशाम्बी, तहसीलदार, उतरौला, श्री बी. उमराव अली, बी. ए. एलएलबी., उतरौला और श्री मोहम्मद यूसुफ़ उस्मानी, संस्थापक प्रबन्धक ने उतरौला के शैक्षिक उन्नयन के लिए एक विद्यालय के नींव रखने की एक सोंच ही नहीं पैदा की बल्कि बहुत बड़ा योगदान दिया। मोहम्मद युसूफ उस्मानी ने अपनी करोड़ो की ज़मीन स्कूल लिए वक़्फ़ कर दी और सन् 1927 ईo इन चारों लोगों के अतुलनीय योगदान से किंग जॉर्ज इंग्लिश स्कूल, उतरौला की नीव रखने की महत्वपूर्ण रूपरेखा तैयार की। सन् 1929 ईo में डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक इंस्ट्रक्शन यूनाइटेड प्रोविंसस द्वारा मिडिल स्तर की मान्यता लेकर शिक्षण कार्य शुरू कर दिया गया। ये कामयाबी की पहली सीढ़ी थी। ये मान्यता कक्षा एक से आठ तक थी।
Part of Resolution of Managing Committee, The Utraula Educational Society Utraula (Gonda)
(2)
(l) To print publish, educate or exhibit any literature books, journals, magazines and other reading materials for the promotion and advancement of religious, charitable, educational and cultural objects and ideas of the society,
(m) To device and implement ways and means, measures and schemes for the welfare of staff employed in the institution and activities of the society and the personnel engaged in the administration and management of the society.
(n) The names and necessary details of the first member of the society to whom by its Rules and Regulations and it's Management is entrusted are as follows:
1- Mr Ghulam Jilani Khan SDM, Utraula 
2- Mr Anant Ali Khan Tehseeldar Utraula
3- Md. Yusuf Usmani Manager Utraula
4- Raja M Ali Khan, Utraula Estate, Utraula 
5- Mahmoodul Haq Khan, Puraina Bazid Utraula 
6- Baboo Umrao Lal, Sub Registrar Utraula 
7- Malik Sharif Hasan, Itairampur Utraula 
8- Malik Abdul Rahman, Itairampur Utraula 
9- Sharafatullah Khan, Pipra Ramchandra, Utraula 
10- Amjad Ali Khan, Chandpur, Utraula 
11- Sohrab Ali Khan, Pipree Kolhee Utraula 
12- Kali Prasad, Utraula Gonda
13- Syed Talib Husain, Baksaria Utraula
14- Ali Wajid Vakil, Utraula Gonda
15- Mohd Amjad Ali Khan, Mahdaiya Estate, Utraula
16- Mohammad Naseer Usmani, Kanahiya, Utraula
17- Baboo Kanhiya Lal Utraula, Gonda
18- Malik Mohammad Ismail, Itai Rampur, Utraula
19- Hamid Ali Khan, Mahdeya Estate, Utraula
20-Mohammad Abbas Ali Khan, Kurkutpurwa, Utraula
We the above mentioned persons whose signature are hereunder are desirous of forming ourselves in you a society under the Societies Registration Act 1860.
1., 2., 3., 4., 5., 6., 7., 8., 9., 10., 11., 12., 13., 14., 15., 16., 17., 18., 19., 20. Sd/- Illegible 
Signatures of Members 
Certified that the above members are well known to me and they have signed in my presence.
Sd/- Illegible
(Seal)
Place : Utraula (Gonda)
Date : 10-6-1930
प्रस्ताव का अनुवाद
(2)
(एल) समाज के धार्मिक, धर्मार्थ, शैक्षिक और सांस्कृतिक वस्तुओं और विचारों के प्रचार और उन्नति के लिए किसी भी साहित्य पुस्तकों, पत्रिकाओं और अन्य पठन सामग्री को प्रकाशित, शिक्षित या प्रदर्शित करना।
(एम) संस्था में कार्यरत कर्मचारियों और समाज की गतिविधियों और समाज के प्रशासन और प्रबंधन में लगे कर्मियों के कल्याण के लिए तरीकों और साधनों, उपायों और योजनाओं को लागू करना और लागू कराना।
(एन) समाज के पहले सदस्य के नाम और आवश्यक विवरण जिन्हें इसके नियमों और विनियमों और इसके प्रबंधन द्वारा सौंपा गया है, इस प्रकार हैं:
1- श्री गुलाम जीलानी खान एसडीएम, उतरौला
2- श्री अमानत अली खान तहसीलदार उतरौला
3- मोहम्मद युसूफ उस्मानी प्रबंधक उतरौला
4- राजा मुस्तफा अली खान, उतरौला एस्टेट, उतरौला
5- महमूदुल हक खान, पुरैना बाज़िद उतरौला
6- बाबू उमराव लाल, सब रजिस्ट्रार उतरौला
7- मलिक शरीफ हसन, इटईरामपुर उतरौला
8- मलिक अब्दुल रहमान, इटईरामपुर उतरौला
9- शराफतुल्लाह खान, पिपरा रामचंद्र, उतरौला
10- अमजद अली खान, चांदपुर, उतरौला
11- सोहराब अली खान, पिपरी कोल्हुई उतरौला
12- काली प्रसाद, उतरौला गोंडा
13- सैयद तालिब हुसैन, बक्सरिया उतरौला
14- अली वाजिद वकील, उतरौला गोंडा
15- मोहम्मद अमजद अली खान, महदेइया एस्टेट, उतरौला
16- मोहम्मद नसीर उस्मानी, कनहिया, उतरौला
17- बाबू कन्हैया लाल उतरौला, गोंडा
18- मलिक मोहम्मद इस्माइल, इटई रामपुर, उतरौला
19- हामिद अली खान, महदेइया एस्टेट, उतरौला
20-मोहम्मद अब्बास अली खान, कुरकुटपुरवा, उतरौला
हम उपर्युक्त व्यक्ति जिनके हस्ताक्षर नीचे हैं, आप के अंतर्गत स्वयं को सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत एक सोसायटी बनाने के इच्छुक हैं।
1., 2., 3., 4., 5., 6., 7., 8., 9., 10., 11., 12., 13., 14., 15., 16., 17. , 18., 19., 20. एसडी/- अपठनीय 
सदस्यों के हस्ताक्षर
प्रमाणित किया जाता है कि उपरोक्त सदस्य मुझे अच्छी तरह से जानते हैं और उन्होंने मेरी उपस्थिति में हस्ताक्षर किए हैं।
एसडी/- अपठनीय 
स्थान : उतरौला (गोंडा)
दिनांक : 10-6-1930
15 जनवरी सन् 1930 ईo विद्यालय के भवन शिलान्यास श्री आर. जी. डी. वाल्टन, डिप्टी कमिशनर गोण्डा की याद में श्री बी. जे. के. हैल्लोवेस इसोर, आईसीएस, डिप्टी कमिशनर, गोण्डा द्वारा किया गया। 04 फरवरी सन् 1930 ई० को सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के अधीन दि उतरौला एजुकेशनल सोसाइटी, उतरौला आई-878 का पंजीकरण हुआ।
प्राचीन परिसर में कुल दस कक्षों का निर्माण हुआ जो दक्षिण-पूर्व में यू आकार में बना हुआ है। जिसमें कार्यालय, प्रधानाचार्य कक्ष, पुस्तकालय, स्टाफ रूम एवं शिक्षण कक्षों को मिलाकर कुल 10 कक्षों का निर्माण हुआ। 1937 में विद्यालय को हाईस्कूल की मान्यता प्राप्त हुई और इसी वर्ष विद्यालय का पहला बैच दसवीं पास आउट भी हुआ। यह विद्यालय किंग जॉर्ज इंग्लिश हाईस्कूल उतरौला हो गया। हाईस्कूल मानविकी वर्ग में अंग्रेज़ी, गणित-1, हिन्दी, उर्दू, संस्कृत, इतिहास, भूगोल, फ़ारसी, अरबी, नागरिक शास्त्र, अर्थशास्त्र, विज्ञान-1 और नैतिक शिक्षा विषयों की मान्यता मिली। हाईस्कूल वैज्ञानिक वर्ग में गणित-2, विज्ञान-2 और जीवविज्ञान विषय की मान्यता प्राप्त हुई। 1930-31 में कक्षा-10 का पहला बैच उत्तीर्ण हुआ। यह गौरवपूर्ण गाथा है। यह वो समय था जब मोहम्मद यूसुफ़ उस्मानी प्रबन्धक और पण्डित अकबर अली खाँ विद्यालय के प्रधानाचार्य थे। कालांतर में इन दोनों महापुरुषों के अथक प्रयास और परिश्रम से कॉलेज निरन्तर सफलता की सीढियाँ चढ़ने लगा। लगातार कामयाबी का सफ़र तय करने के बाद फ़िर इन लोगों ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। जिन लोगों ने वो ज़माना देखा है और आज ज़िन्दा हैं वे लोग आज भी उन बुजुर्गों की याद अपने सीने में सजाये बैठे हैं।
1948 में मोहम्मद यूसुफ़ उस्मानी की मृत्यु हो जाने से एक बार तरक़्क़ी की राह पर चलते स्कूली कारवां को झटका सा लगा लेकिन तरक़्क़ी का कारवाँ आगे बढ़ता रहा और श्री महमूदुल हक़ खाँ, जो सन 1948 से 1950 तक प्रबन्धक रहे। उस्मानी साहेब और खान साहेब के सपनों को साकार करने के लिए 1951 में श्री मालिक मोहम्मद उमर, प्रबन्धक और पण्डित अकबर अली खाँ ने फ़िर इसी राह पर चल कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया जो कॉलेज के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ और इंटरमीडिएट मानविकी वर्ग की मान्यता प्राप्त हो गई। फिर ये कॉलेज किंग जॉर्ज इण्टर कॉलेज, उतरौला हो गया। मानविकी वर्ग में हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, गणित, नागरिक शास्त्र, इतिहास, भूगोल, संस्कृत, फ़ारसी, मनोविज्ञान एवं अर्थशास्त्र की मान्यता प्राप्त हुई।
किंग जॉर्ज इंग्लिश स्कूल, उतरौला को 1931-32, किंग जॉर्ज इंग्लिश हाईस्कूल उतरौला को 1937-38 तथा किंग जॉर्ज इंटरमीडिएट कॉलेज, उतरौला को 1951-52 में अनुदान मिला। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि तत्कालीन अनुदान व्यवस्था में वेतन हेतु कुछ अंशदान सरकार द्वारा प्राप्त होता था। अल्पशुल्क, प्रबंधकीय स्रोत आदि को मिलाकर अध्यापकों एवं कर्मचारियों का वेतन भुगतान किया जाता था।
श्री महमूदुल हक़ खाँ और श्री मलिक मोहम्मद उमर के प्रयास से 1952 में मानविकी संकाय के तीन कक्षों और भूगोल प्रयोगशाला का निर्माण कराया हुआ। 26 अगस्त 1963 में श्री जे पी गोविल, डिप्टी कमिश्नर, गोण्डा द्वारा दो कक्षों की नीव रखी गई परन्तु निर्माण कार्य वित्तीय कमी के कारण देर से हुआ। 
1964 में पण्डित अकबर अली सेवानिवृत्त हो गए और श्री मौदूद अहमद प्रधानाचार्य बने। 1968 में श्री नूरूल्लाह खाँ, प्रबन्धक ने कमेटी के साथ मिलकर भरपूर कोशिश की और हाजी वहीदुल्लाह खान एण्ड ब्रदर्स, कलकत्ता, हाजी मलिक मोहम्मद उमर एण्ड ब्रदर्स कलकत्ता, हाजी मलिक अब्दुर्रहमान, कलकत्ता, हाजी नूर मोहम्मद एण्ड संस कलकत्ता, कॉलेज मैनेजिंग कमेटी और मुख्य रूप से शिक्षक-अभिभावक संघ के सक्रिय योगदान से  दो कक्षों एवं एक प्रयोगशाला का निर्माण कराया।
वितरण अधिनियम 1971, 29 अगस्त 1971 को पारित होने के उपरांत अध्यापकों एवं कर्मचारियों के वेतन का शत-प्रतिशत भुगतान सरकार द्वारा प्रदान किया जाने लगा। यह अधिनियम सेवकों के लिए बहुत बड़ी बात थी।
1984 में जीवविज्ञान प्रयोगशाला का निर्माण मैनेजिंग बॉडी के ऑफिस बेयरर्स श्री रफी महमूद खाँ, प्रेसिडेंट, श्री सलाहुद्दीन खाँ, वाइस प्रेसिडेंट, श्री नूरूल्लाह खाँ, प्रबन्धक और श्री मतीउल हक खाँ, प्रिंसिपल की देखरेख में, जिसमें पूर्व प्रधानाचार्य श्री मुजीबुल हसन खाँ, जो उस समय अध्यापक थे, की मेहनत भी बहुत मायने रखती है, 1984 में कॉलेज को इंटरमीडिएट विज्ञान वर्ग की मान्यता ले ली। विज्ञान वर्ग में सामान्य हिन्दी, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, जीवविज्ञान और गणित विषय की मान्यता मिली।
श्री मतीउल हक खाँ ने शिक्षक अभिभावक संघ द्वारा 1986 से 1989 के मध्य पूर्व में साइंस ब्लॉक के ऊपरी प्रखंड के निर्माण कराया जिसमें दो हाल, परीक्षा कक्ष, दो शिक्षण कक्ष के अतिरिक्त हाई स्कूल साइंस लैब (वर्तमान कम्प्यूटर लैब) है। कालांतर में जूनियर ब्लॉक की शुरुआत मतीउल हक साहब ने किया जिसको आगे चलकर श्री मुबीन अहमद सिद्दीकी के कार्यकाल में पूरा कराया गया जिसमें कुल 9 कक्ष हैं। 1996 में कॉलेज ने अपने इतिहास को दुहराने की प्रक्रिया शुरू की। कॉलेज के मैनेजर श्री सलीम महमूद खाँ, प्रिंसिपल श्री मुबीन अहमद सिद्दीकी और कॉलेज के बुद्धजीवी अध्यापकों ने एक बड़ी कामयाबी हासिल की और कॉलेज का नाम संस्थापक प्रबन्धक के नाम पर एम वाई उस्मानी इण्टर कॉलेज होने के साथ साथ संस्था को अल्पसंख्यक संस्था घोषित करा लिया। 1996 से 2000 के मध्य जुनियर ब्लॉक की छत का कार्य श्री उबैदुर्रहमान द्वारा प्रदत्त विधायक निधि द्वारा कराया गया। पैरेंट टीचर एसोसिएशन के सहयोग से जूनियर ब्लॉक के दोनों मंज़िलों का कार्य श्री सलीम महमूद खाँ और तत्कालीन प्रधानाचार्य श्री मुजीबुल हसन खाँ के कार्यकाल में पूरा कराया गया। 
वर्तमान में कॉलेज के प्रबंधक श्री अनवर महमूद खाँ और प्रधानाचार्य श्री अबुल हाशिम खाँ हैं। वर्तमान समय में कॉलेज में कुल 60 का स्टाफ़ है। जिसमें 40 पीजीटी, टीजीटी, 05 क्लर्क और 15 चपरासी हैं। वर्तमान छात्र संख्या लगभग 3000 है। ये कीर्तिमान मण्डल स्तरीय है जो विगत सात वर्षों से कायम है। वर्तमान में परिसर का एकेडेमिक बिल्डिंग चार भवनों में विभाजित है जिसमें कुल मिलाकर 45 कमरे और 08 बरामदे हैं। कॉलेज में दो पार्क, प्रेयर ग्राउंड, जूनियर पैसेज, पूल एरिया, फारेस्ट एरिया के अलावा एक बड़ा खेल का मैदान है। कॉलेज में एनसीसी, स्काउटिंग, रेडक्रास और गेम्स की व्यवस्था है। 
वर्तमान परिवेश में शैक्षिक उन्नयन के लिए ऑफलाइन और ऑनलाइन क्लास पर बल दिया जा रहा है। संसाधनों की कमी, विशेषकर पुराने भवन की मरम्मत के लिए विभागीय अथवा शासन स्तर से किसी प्रकार का अनुदान न मिलना कहीं न कहीं रुकावट बनता है। कॉलेज में लेक्चर हाल, मीटिंग हाल, आधुनिक लाइब्रेरी और एक ऑडिटोरियम बनाये जाने की सख़्त ज़रूरत है। ओल्ड बॉयज के एसोसिएशन के गठन और उनका कॉलेज में निरंतर सम्मेलन कराना श्री अबुल हाशिम ख़ाँ की प्रबल इच्छा है। कॉलेज के अलमनी दुनिया के विभिन्न राष्ट्रों के साथ-साथ देश के अलग-अलग कोनों में अपने-अपने क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। गूगल फॉर्म, सोशल मीडिया प्लेटफार्म और विभिन्न लोगों से सम्पर्क कर प्रिंसिपल द्वारा डेटा इकठ्ठा कराया जा रहा है। जल्द ही पहली अलमनी मीट का आयोजन विद्यालय में होगा। 2027 में विद्यालय के प्लैटिनम जुबली का भव्य आयोजन होगा।
विद्यालय के प्रबंधकों की सूची
1- श्री मोहम्मद यूसुफ उस्मानी 1929 से 1948 तक
2- श्री महमूदुल हक़ खाँ 1948 से 1950 तक
3- श्री मलिक मोहम्मद उमर 1950 से 1964 तक
4- श्री नूरूल्लाह खाँ 1964 से 1992 तक
5- श्री अब्दुल अलीम सिद्दीकी 1992 1994 तक
6- श्री सलीम महमूद खाँ 1994 से 2020 तक
7- श्री अनवर महमूद खाँ (कार्यवाहक) 2020 से 2021 तक
8- श्री अनवर महमूद खाँ 2021 से अब तक
विद्यालय के प्रधानाचार्यों की सूची
1- श्री अकबर अली ख़ाँ 1929 से 1964 तक
2- श्री मौदूद अहमद 1964 से 1968 तक
3- श्री समीउल्लाह खाँ 1968 से 1978 तक
4- श्री सै. ग़ुलामुस सिब्तेन 1978 से 1981 तक
5- श्री मतीउल हक खाँ 1981 से 1993 तक
6- श्री इफ़्तेख़ार अहमद खाँ 1993 से 1997 तक
7- श्री मुबीन अहमद सिद्दीक़ी 1997 से 2009 तक
8- श्री मुजीबुल हसन खाँ 2009 से 2012 तक
9- श्री मोहम्मद ज़ुबैर अंसारी 2012 से 2014 तक 
10- श्री अबुल हाशिम ख़ाँ 2014 से अब तक
Abul Hashim Khan
Principal 
M Y Usmani Inter College, Utraula
Dated : January 08, 2022
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